मुक्तक
जब भी दर्दे-सितम की इन्तहाँ होती है!
बेकरार लम्हों की जुत्सजू रोती है!
यादें भी चुभती हैं पलकों में इसकदर,
जिन्द़गी अश्कों से खुद को भिगोती है!
#महादेव_की_कविताऐं'(23)
जब भी दर्दे-सितम की इन्तहाँ होती है!
बेकरार लम्हों की जुत्सजू रोती है!
यादें भी चुभती हैं पलकों में इसकदर,
जिन्द़गी अश्कों से खुद को भिगोती है!
#महादेव_की_कविताऐं'(23)