*मुक्तक*
जाना पहचाना सा दर्द सीने में हिलोरे ले रहा है ।
न जाने किस अपने की पीड़ा का संकेत दे रहा है ।।
यूं दिन भर दिन बैचनी सी बढ़ती जा रही है सीने में ।
जैसे किसी अपने पर आफ़त का अंदेशा हो रहा है ।।
जाना पहचाना सा दर्द सीने में हिलोरे ले रहा है ।
न जाने किस अपने की पीड़ा का संकेत दे रहा है ।।
यूं दिन भर दिन बैचनी सी बढ़ती जा रही है सीने में ।
जैसे किसी अपने पर आफ़त का अंदेशा हो रहा है ।।