मुक्तक
ऊपर तक भरा था अब धुआं हो रहा हूं
मैं हर तरफ़ से फना हो रहा हूं
~ पुर्दिल
मैं हर्फ हर्फ जुदा लिखूं , तू खुदा का उस में दीदार कर
मेरे अल्फाजों के मोती को तू इश्क का मैयार कर
~सिद्धार्थ
अबके उठूंगी गर मैं पुर्दिल… दिल के दयार से
मिल के तनहा ही आऊंगी बादी ए गुलनार से
~ सिद्धार्थ