मुक्तक
कभी मुझे भी रुह में तुम्हारे याद बन इतराने दो
तुम तो मुझ में यादों का काफ़िला बने फिरते हो !
…पुर्दिल
2.
मन के कमरे की दीवार सीलन वाली है
दरारें हैं कुछ गहरी सी और पपड़ी गिरने वाली है
~ सिद्धार्थ
3.
हर रात पलकों के गांव में इक सपना ज़बान होता है
हर सुबह मृत सपने के लिए कफ़न तैयार रहता है।
~ सिद्धार्थ