मुक्तक
रित से प्रित करो कबहो ना,
फूल खिलन मुरझाए जाएं,
अगर अंधा प्रेम जो करत फूल से,
बेचारा गंवा जाएं जिवन से,
रित से प्रित करो कबहो ना,
सांझ धरी ,धरा आलिंगन करके,
भोर धरा में मिल जाए,
ऐसी ही रहो जग में,
तब दुःख कबहु ना,
करे परिक्रमा तुम्हारे