मुक्तक
मंजिल भी अपनी है मिल ही जायेगी
कोशिश करेंगे तो हांसिल हो ही जायेगी
रात के बाद सवेरा तो आना लाजमी ही है
फिर सोचने के बाद कैसे न मजिल मिल जायेगी
अजीत कुमार तलवार
मेरठ
मंजिल भी अपनी है मिल ही जायेगी
कोशिश करेंगे तो हांसिल हो ही जायेगी
रात के बाद सवेरा तो आना लाजमी ही है
फिर सोचने के बाद कैसे न मजिल मिल जायेगी
अजीत कुमार तलवार
मेरठ