मुक्तक
हर मोड़ पे कोई न कोई हम से ख़फ़ा है
ऐसा लगता है
सभी वफ़ा के पुतले में हमीं इक बेवफ़ा हैं
~ सिद्धार्थ
2.
बड़ी देर तक ताकती रही तुझ को
फिर कहा … अब चलती हुं
जा के अपने जख्मों को सिलती हूं
~ पुर्दिल सिद्धार्थ
हर मोड़ पे कोई न कोई हम से ख़फ़ा है
ऐसा लगता है
सभी वफ़ा के पुतले में हमीं इक बेवफ़ा हैं
~ सिद्धार्थ
2.
बड़ी देर तक ताकती रही तुझ को
फिर कहा … अब चलती हुं
जा के अपने जख्मों को सिलती हूं
~ पुर्दिल सिद्धार्थ