मुक्तक
1.
मुहब्बत यूं ही रह गया दुकान के आले में
नफरत हाथों हांथ बिक गया बस दिखाने में
~ सिद्धार्थ
2.
मेरे अंदर का इंसान मुझे आज अंधेरे में रहने को मजबूर कर रहा है।
मौत को उत्सवित करूं उतनी अभी चालाक नहीं हुई
~ सिद्धार्थ
1.
मुहब्बत यूं ही रह गया दुकान के आले में
नफरत हाथों हांथ बिक गया बस दिखाने में
~ सिद्धार्थ
2.
मेरे अंदर का इंसान मुझे आज अंधेरे में रहने को मजबूर कर रहा है।
मौत को उत्सवित करूं उतनी अभी चालाक नहीं हुई
~ सिद्धार्थ