मुक्तक
सब ने कहा, भूलने की तुझे बुरी लत लग आई है
हम ने कहा, कहां इसे मैंने अभी तक दिल से लगाई है
दिमाग की ये तो जाई है, दिमाग में ही समाई है
दिल तो चुपके से उसी के नाम में धूनी जमाई है
~ सिद्धार्थ
2.
दिमाग ही है जो अर्श से फर्श पर ले जाती है
दिल कि गली को भी सूने पन से भर जाती है…
~ सिद्धार्थ