मुक्तक
दिल के कमरे में पहले से ही
पुर-ख़ुलूस सा किरायेदार रहता है
बेचैनियों से मेरी वो राबता रखता है
हर सांस में नाम के उसके धड़का रहता है
धडकनों के साथ ही
बही – खाता बन्द करूंगा कहता रहता है
हर ख़सारा गंवारा करूंगा
दिल हस कर कहता रहता है
~ सिद्धार्थ