मुक्तक
मेरा मन मुझसे होकर रूबरू ‘रोली’ ये कहता है।
कि उनका अक्स अक्सर मेरी परछाईं में रहता है।
मैं चाहें कितना ही समझाऊँ खुद को पर मेरे दिल में,
अब उनके प्रेम का दरिया असीमित गति से बहता है।।
✍?रोली शुक्ला
कहीं हर लम्हा अब उनकी निशानी ही न बन जाये।
तेरे दिल की कशिश ‘रोली’ पुरानी ही न बन जाये।
चलो हम क्यों न मिलकर के मुकम्मिल ही इसे कर लें,
कि इससे पहले ये क़िस्सा कहानी ही न बन जाये।
✍?रोली शुक्ला