मुक्तक
1.
चलो हम हस के देखते हैं
चेहरे के तबे पे हसी की रोटी सकते हैं
दर्द को गालों पे ढलकने से रोकते हैं
हम मिल के जिंदगी के गली में मुस्कान फेकते हैं
~ सिद्धार्थ
2.
कांटे न हो तो एहसास के एहसास से जी उब जाएगा
कहो तो … गुलाब भला कब तलक दिल लुभाएगा
~ पुर्दिल
3.
जिंदगी के तपते आंगन में मैंने कब फायदा – नुकसान के बेली उगाए हैं
जो भी मिला… उसे अपना हिस्सा समझ कर हस के गले लगाए हैं
~ पुर्दिल