उठाऊँ लेखनी जब भी
उठाऊँ लेखनी जब भी हृदय का दर्द झरता है।
मनाऊँ लाख मैं खुद को नहीं दिल धीर धरता है।
जगत को देख कर रोई बिगड़ते हाल पर रोई,
कठिन है वेदना सहना नयन में नीर भरता है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
उठाऊँ लेखनी जब भी हृदय का दर्द झरता है।
मनाऊँ लाख मैं खुद को नहीं दिल धीर धरता है।
जगत को देख कर रोई बिगड़ते हाल पर रोई,
कठिन है वेदना सहना नयन में नीर भरता है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली