मुक्तक
दिल के मामलों में हम जहाँ से बड़े हैं
दिल तुमको देने को लिए हाथों में खड़े हैं
लोगे तुम नहीं बिना दिए हम जाएंगे नहीं
तुम जिद पे अडे़ हो तो हम भी जिद पे अडे़ हैं
लाख मुश्किलें इस जिंदगी के रास्ते में है
जो देखता कहता है कि बंदा मजे में है
तंगहाली में गिरा जो भूख से एक दिन
कहने लगे सब लोग कि ये तो नशे में है
गर रिश्ता किसी दिल से अपने दिल का जोड़ना
जो हाथ थामना तो कभी भी न छोड़ना
होगा ज्यादा अच्छा कि प्यार न करना
पर झूठे प्यार से किसी का दिल न तोड़ना
रोता हूं गर तो आंखें नम दिखाता मैं नहीं
हो दिल में चाहे लाख गम जताता मैं नहीं
दे दी कसम जो तुमने तो कहना पड़ा मुझे
क्योंकि अपनो झूठी कसम खाता मैं नहीं
विक्रम कुमार
मनोरा , वैशाली