मुक्तक
हैं नकाबों में छिपे कुछ हाथों में पत्थर लिए,
बचके जाएं हम कहां कांच का ये घर लिए,
देख अपनों की दगा जज़्बात ही मर जाते हैं
जब मुस्कुरा के लोग मिले हाथ में खंजर लिए..
हैं नकाबों में छिपे कुछ हाथों में पत्थर लिए,
बचके जाएं हम कहां कांच का ये घर लिए,
देख अपनों की दगा जज़्बात ही मर जाते हैं
जब मुस्कुरा के लोग मिले हाथ में खंजर लिए..