मुक्तक
आज ये मंजर नज़र भी देख कर हैरान है,
हाल पूछा ऐसे कि ज्यों हाल से अंजान हैं,
नफ़रतों की आग वो फैला रहे चारों तरफ
ज़िंदगी समझा जिसे वो मौत के सामान हैं
आज ये मंजर नज़र भी देख कर हैरान है,
हाल पूछा ऐसे कि ज्यों हाल से अंजान हैं,
नफ़रतों की आग वो फैला रहे चारों तरफ
ज़िंदगी समझा जिसे वो मौत के सामान हैं