मुक्तक
अँधेरों में भी सूरज की तरफ़दारी नहीं क़ी है,
कहीं रुसवा कभी हमने तो खुद्दारी नहीं क़ी है,
खुशी से प्यार है मुझको मगर सच ये भी है यारों
कभी अश्कों से मैंने खुद के गद्दारी नहीं क़ी है…..
अँधेरों में भी सूरज की तरफ़दारी नहीं क़ी है,
कहीं रुसवा कभी हमने तो खुद्दारी नहीं क़ी है,
खुशी से प्यार है मुझको मगर सच ये भी है यारों
कभी अश्कों से मैंने खुद के गद्दारी नहीं क़ी है…..