मुक्तक
मुख़्तसर सा एक ख़ाब है हांथो में तेरे मेरा हाँथ है
दिल धड़कता है मेरा और ख्वाहिशें भी बेशुमार है।
सुकून मिल जायेगा दिल-ए-बेकरार को इस ख्याल से
तू भी तकता है चाँद, तकते हैं जिस ख्याल-ए-हाल में हम।
रात के नाजुक सीने पे दिल की हजारों ख़्वाहिशें सवार हैं
तुम तो नही हो सखे दिल की नादानियों के है साथ हम।
दिल की खामोशी में दाँतों तले दवा के हर रात हम
और कितनी रातें जियेंगे, जागते आँखों के साथ हम।
…सिद्धार्थ