मुक्तक
इंसानियत लंगड़ा हुआ धर्म के बाजार में
खून की तलब लगी है मज़हबी तलबार में !
…सिद्धार्थ
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सदा-ए-इंक़लाब की उठी तो पूजीं टिक न पायेगी
हर जर्रे से फिर बगावत की धमकती आवाज़ आएगी !
…सिद्धार्थ
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हक की बातें करने वाले पागलों की फौज जब तैयार है
इस दहर में ख़ामोश होठों की भी उतनी ही भरमार है !
…सिद्धार्थ