मुक्तक
मेरा दूसरा मुक्तक-
अन्याय हँसे खुलकर, ये न्याय अदालत है,
निर्दोष सज़ा पाते, खूनी को’ रियायत है।
धृतराष्ट्र बने बैठे, संसद के’ सभी आका,
बस चोर डकैतों की , बेशर्म सियासत है।
दीपशिखा सागर-
मेरा दूसरा मुक्तक-
अन्याय हँसे खुलकर, ये न्याय अदालत है,
निर्दोष सज़ा पाते, खूनी को’ रियायत है।
धृतराष्ट्र बने बैठे, संसद के’ सभी आका,
बस चोर डकैतों की , बेशर्म सियासत है।
दीपशिखा सागर-