मुक्तक
वफ़ा नफरत जो मिले,
बिना शर्त लिए जा रहा हूं…
जिंदगी को शतरंज समझ,
श्य मात दिए जा रहा हूं…!!
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ना लिखने की शैली का ज्ञान,
ना सही शब्द की पहचान,
दिल के दर्द और अहसास,
उकेरते हैं कविता में…!!
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मुझे एक नशा इश्क का है,
कोई और नशा चढ़ता ही नहीं,
सिगरेट जलता है और धुआं हो जाता है,
यादें हैं कि फिर भी टलता ही नहीं…!!
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कभी इश्क दवा कभी दुआ बनती है,
लाइलाज मर्ज भी कभी यही बनती है..!!
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उदास आंखें आज भी ढूंढ़ती हैं तुझे हर ओर,
सांसे चलती है रुक रुक कर, दिल की धड़कन गई किस ओर!!
….राणा….