मुक्तक
तुम्हें अपनी आना को सरे बाम सहलाना था
बस इस लिए अहले बतन को बेच आना था।
हिन्दू – मुस्लिम जो कभी थे भाई- भाई
उनके हाथों में नफ़रत की तलबार पकड़ना था।
सब चुप बस सुनते रह गए तेरे जुमलों का लतीफ़ा
इसी दरम्यां पांच साल को चुपके से निकल जाना था !
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11-05-2019
…सिद्धार्थ…