मुक्तक
जीवन की यह कर्मभूमि है उचित नहीं चुप रह जाना,
लगे ज़रूरी जब भी कहना सुन लेना कुछ कह जाना,
धैर्य, अहिंसा, स्नेह, शान्ति की बातों को मानो लेकिन
जो भारत के गद्दार उन्हें मौनी बन कर मत सह जाना
जीवन की यह कर्मभूमि है उचित नहीं चुप रह जाना,
लगे ज़रूरी जब भी कहना सुन लेना कुछ कह जाना,
धैर्य, अहिंसा, स्नेह, शान्ति की बातों को मानो लेकिन
जो भारत के गद्दार उन्हें मौनी बन कर मत सह जाना