मुक्तक
रौशनी को दीप हम मिलकर जलाएँगे,
तीरगी के पाँव फिर खुद लड़खड़ाएँगे,
अब तो काँटें ही काँटे सभी डाल पर
हाँ मगर फूल बनकर के मुस्कुराएँगे,
रौशनी को दीप हम मिलकर जलाएँगे,
तीरगी के पाँव फिर खुद लड़खड़ाएँगे,
अब तो काँटें ही काँटे सभी डाल पर
हाँ मगर फूल बनकर के मुस्कुराएँगे,