मुक्तक
(1)
जिसका बहुमत उसी की *सत्ता
दिखलाए वह अपनी प्रभुत्ता
उससे पंगा लिया तो जैसे
आ पड़ा मधुमक्खी का छत्ता।
(2)
अतुल *सुंदरी थी पद्मावती
थी वह पतिव्रता नारी सती
जौहराग्नि में हो गई स्वाहा
ससम्मान गई सौभाग्यवती
(3)
वर्षा की बूंद स्वाति का योग
दोनों का है अद्भुत *संयोग
इस से सीप में बनता मोती
धनवान करें जिसका उपयोग।
(4)
नन्हे बालक को देवें प्यार।
करें उससे हम मधुर व्यवहार
पहले तो विश्वास में लें हम
तदुपरांत दें उत्तम *संस्कार
(5)
मन मस्तिष्क सदा रहता शांत
दुख में ना हों विचलित आक्रांत
धीर भीर व गंभीर बनाते
साधु मनुज के ये हैं *सिद्धांत।
अनुराग (मुक्तक)
(1)
बेटी बनी दुल्हन आज भाग्य पिता के गये हैं जाग।
तू रानी बन राज करे होवे तेरा अखंड सुहाग।।
एक पिता के हृदय से निकले बिटिया यह आशीष सदा।
रहे हृदय में प्रीत हमेशा बसा रहे अटल अनुराग।।
(2)
बेटा ही नहीं बेटी भी बनी है अब घर का चिराग।
निकलो झूठे ढकोसलों से नींद से तुम जाओ जाग।।
बेटे और बेटी में तुम कोई भेदभाव न करना।
दोनों को ही मिले आपका समान ममत्व व अनुराग।।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©