मुक्तक
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगी
वरना ख़ुद्दार मुसाफ़िर हूँ गुज़र जाऊँगी,
आँधियों का मुझे क्या ख़ौफ़ मैं पत्थर हूँ
रेत का ढेर नहीं हूँ जो बिखर जाऊँगी
ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगी
वरना ख़ुद्दार मुसाफ़िर हूँ गुज़र जाऊँगी,
आँधियों का मुझे क्या ख़ौफ़ मैं पत्थर हूँ
रेत का ढेर नहीं हूँ जो बिखर जाऊँगी