मुक्तक
रख दीजिए समय की धारा को मोड़कर,
है संग आज हम सब निज स्वार्थ छोड़कर,
ऐसा हो अब विकास कि फिर कभी किसान,
देखे न आसमान को खेतों को गोड़कर,
रख दीजिए समय की धारा को मोड़कर,
है संग आज हम सब निज स्वार्थ छोड़कर,
ऐसा हो अब विकास कि फिर कभी किसान,
देखे न आसमान को खेतों को गोड़कर,