मुक्तक
” अपनी लगाई आग के शोलों में जल जाते हैं लोग,
अब तो अँधेरे में यूं हीं बस रोशनी पाते हैं लोग,
काश इक पल अपनी मर्ज़ी से भी जीकर देखते
जाने किस-किस के इशारे पर जिए जाते हैं लोग!
” अपनी लगाई आग के शोलों में जल जाते हैं लोग,
अब तो अँधेरे में यूं हीं बस रोशनी पाते हैं लोग,
काश इक पल अपनी मर्ज़ी से भी जीकर देखते
जाने किस-किस के इशारे पर जिए जाते हैं लोग!