मुक्तक
” रौशन जुगनूओं से मेरी तो हर रात होती है,
तन्हा आस्मां की धरती से कुछ बात होती है,
कभी भी मेघ रुकते है नहीं बंजर जमीन पर दोस्त
सदा सागर में ही नित नयी बरसात होती है “
” रौशन जुगनूओं से मेरी तो हर रात होती है,
तन्हा आस्मां की धरती से कुछ बात होती है,
कभी भी मेघ रुकते है नहीं बंजर जमीन पर दोस्त
सदा सागर में ही नित नयी बरसात होती है “