मुक्तक
अब नहीं तुलसी कबीरा ना यहाँ रसखान है,
भेड़िये की खाल को ओढ़े हुए इंसान हैं,
शूल बिकते हैं यहाँ अब फूल की दूकान पर,
धूल की परतों में अब तो ज्ञान की पहचान है
अब नहीं तुलसी कबीरा ना यहाँ रसखान है,
भेड़िये की खाल को ओढ़े हुए इंसान हैं,
शूल बिकते हैं यहाँ अब फूल की दूकान पर,
धूल की परतों में अब तो ज्ञान की पहचान है