मुक्तक
” घर जल गया तो सारे, निकले कुएँ बनाने,
बहरूपिये चले हैं, अब मिल्क़ियत भुनाने,
जो लोग ठग रहे थे वर्षों से इस वतन को
वो लोग आ रहे हैं, वही सपने नए दिखाने “
” घर जल गया तो सारे, निकले कुएँ बनाने,
बहरूपिये चले हैं, अब मिल्क़ियत भुनाने,
जो लोग ठग रहे थे वर्षों से इस वतन को
वो लोग आ रहे हैं, वही सपने नए दिखाने “