मुक्तक
मेरे शब्द वो चीख़ है जो हर जख्म पे निकल आती है
तू वो हाकिम है जिसके सीने में धडकता दिल ही नहीं।
मौत नंगी नाचती रही हर दिन घर -आंगन में हमारे
आहो की आवाज़ हमारी क्या कानों तक तेरे जाती है ?
।।सिद्धार्थ।।
मेरे शब्द वो चीख़ है जो हर जख्म पे निकल आती है
तू वो हाकिम है जिसके सीने में धडकता दिल ही नहीं।
मौत नंगी नाचती रही हर दिन घर -आंगन में हमारे
आहो की आवाज़ हमारी क्या कानों तक तेरे जाती है ?
।।सिद्धार्थ।।