मुक्तक
हम मुतमइन हो नहीं सकते इस दौरे सियासत में
ख़िलाफ़त के लिए बोलना अभी बेहद जरूरी है !
उन्माद बेचने वालों की बड़ी-भीड़ लगी है प्यारे
उन के मुहों में इंसानी जज़्बात ठूसना बांकी है !
।।सिद्धार्थ।।
हम मुतमइन हो नहीं सकते इस दौरे सियासत में
ख़िलाफ़त के लिए बोलना अभी बेहद जरूरी है !
उन्माद बेचने वालों की बड़ी-भीड़ लगी है प्यारे
उन के मुहों में इंसानी जज़्बात ठूसना बांकी है !
।।सिद्धार्थ।।