मानव
बाहर चंदन सा महक रहा,
लेकिन अंदर से खारा है।
आने जाने की चक्की में,
पिसता मानव बेचारा है।
बस लगा रहा अपनी धुन में,
जीवन भर समझ नहीं पाया –
सब यहीं धरे रह जायेगे,
जिस दिन टूटा इकतारा है।
-लक्ष्मी सिंह
बाहर चंदन सा महक रहा,
लेकिन अंदर से खारा है।
आने जाने की चक्की में,
पिसता मानव बेचारा है।
बस लगा रहा अपनी धुन में,
जीवन भर समझ नहीं पाया –
सब यहीं धरे रह जायेगे,
जिस दिन टूटा इकतारा है।
-लक्ष्मी सिंह