मुक्तक
नज़र बचाके
न जाने
किधर गया होगा
ज़मीं की
तल्ख़
हकीक़त से
डर गया होगा
रोज
हज़ारों ने
उसकी कसम
झूँठी खायी है
मुझे
ये डर है
कि खुदा भी
मर गया होगा।
सञ्जय नारायण
15 सितम्बर 2019
नज़र बचाके
न जाने
किधर गया होगा
ज़मीं की
तल्ख़
हकीक़त से
डर गया होगा
रोज
हज़ारों ने
उसकी कसम
झूँठी खायी है
मुझे
ये डर है
कि खुदा भी
मर गया होगा।
सञ्जय नारायण
15 सितम्बर 2019