मुक्तक
क़ैदखाने में कहाँ है, शुद्ध जल- ताज़ी हवा.
छिन गई मजलूम से है,रोटियाँ – मरहम- दवा.
भूख का तांडव ग़ज़ब,पसरा हुआ कुछ इस तरह,
लग रहा यूँ दिनों से , ठण्डा पड़ा चूल्हा – तवा.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/ साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित
क़ैदखाने में कहाँ है, शुद्ध जल- ताज़ी हवा.
छिन गई मजलूम से है,रोटियाँ – मरहम- दवा.
भूख का तांडव ग़ज़ब,पसरा हुआ कुछ इस तरह,
लग रहा यूँ दिनों से , ठण्डा पड़ा चूल्हा – तवा.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/ साहित्यकार
सर्वाधिकार सुरक्षित