मुक्तक :- क़ातिल निगाहें
क़ातिल निगाहें हुआ करती थी कभी
मुस्कान से जी जाया करते थे कभी
आज जीना भी दुस्वार कर दिया है
उफ़ क़ातिल मुस्कान से बचे कैसे कभी
?मधुप बैरागी
नींद के आगोश में कब कोई सो पायेगा
ये नागिन से बाल बाला के देख पायेगा
रातभर नींद नहीं आएगी उसको देख
चौंक-चौंक जागेगा स्वप्न में सो पायेगा ।।
?मधुप बैरागी