मुक्तक-विन्यास में एक तेवरी
मैं तो हूँ पावन बोल रहा
अब पापी का मन बोल रहा |
नित नारी को सम्मान मिले
हँसकर दुर्योधन बोल रहा |
सूखा को सावन बोल रहा
अंधों का चिन्तन बोल रहा |
अफ़सोस यही है सत्ता की
भाषा में जन-जन बोल रहा |
पायल-सँग कंगन बोल रहा
रति का सम्बोधन बोल रहा |
बारूदी गंधें मत बांटो
सांसों का चन्दन बोल रहा |
+रमेशराज