मुक्तक—विजय पर्व—डी के निवातिया
—-विजय पर्व —-
पूजा, भक्ति, ज्ञान, ध्यान में था वो देवो का ख़ास ।
सुत, बंधू, सगे, सेवक सहित किया कुल का नाश ।
अधर्म और अहंकार सदैव अहितकारी होते है ।
इन द्वेषो ने किया रावण सहित लंका का विनाश ।।
मन से मैले हुए सभी, तन वस्त्र सब चमका दिये ।
झूठी परम्परा निभा, रावण के पुतले जला लिये ।
विषय वासना लोभ के अधीन हुआ जन मानष ।
उर विकार मिटे नही उत्सव विजय पर्व मना लिये ।।
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