मुक्तक द्वय -कृत्रिम,नैसर्गिक
कृत्रिम :
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क्या रक्खा है, कृत्रिम जीवन जीने में.
क्या मिलना है, खारा पानी पीने में.
‘सहज’ जियो तब, समझ सकोगे निश्चित ही,
असर चुभन का, खुद ही अपने सीने में.
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नैसर्गिक:
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नैसर्गिक नियमों का, उल्लंघन अनुचित है.
स्वाभाविक जीवन, अपनाना सर्वोचित है.
जहाँ न मिलता मान और सम्मान यक़ीनन ,
जाना-आना वहां ‘सहज’, निश्चित अनुचित है.
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@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
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