मुक्तक : कुंडली छंद : 22 मात्राऐं, यति 12,10 यति से पूर्व या तुरंत बाद में 21, 12 मात्राऐं, अंत 2 गुरु
ध्रुवतारा
पिता उत्तानपाद का, पुत्र था ध्रुवतारा
गोद चढ़ने पिता की, हठी था बेचारा
माता सुरुचि ने उसे, खींच कर उतारा
क्या है मुझसे नाता, पूछ चढ़ा पारा।।
गर्भ से जनम लेना, सर्वप्रथम मेरे
तब अधिकार मिलेगा, पिता तभी तेरे
कटु वचन से ध्रुव मन, हुआ जो रुआंसा
मां सुनीति से पूछे, कौन तात मेरे।।
भाग्य क्यों रूठे है ? धीर मनस पूछे
बतायी व्यथा सारी, तीर अंश गूंजे
तुम जाओ तप करने, अगर हठी हो तो
ध्रुव को समझाए, नयन मोह चूमें।।
मन में दृढ़ संकल्प से, त्याग दिए नाते
ध्रुव मग्न हो तप करते, ऋषि वन में जाते
अचरित हो नारद मुनि, ईश हाथ जोड़ें
श्रीहरि सुने वेदना, मुनि हृदय बुलाते।।
घोर तप में लीन हो, तेज बढ़ गया जो
कांपा उसके तप से, रचा लोक था वो
दबाव अंगूठे से, पृथ्वी दब झुकी जो
श्रीहरि तब प्रकट हुए, वत्स!तुम वर मांगो।।
“विनती है गोद मिले, यही हरि इच्छा है।”
“आकाश में वो स्थान तुमको देता हूँ ।”
आकाश मेरी गोद, वहाँ तुम रहोगे
ऋषि करेंगे परिक्रमा, सदा दिव्य रहोगे
अब तप तज घर जाओ, खुश होगी माता
छत्तीस हजार वर्षों, पृथ्वी पर रहोगे।।