मुकाम-२
कसेे समझाऊ खुद को
के इतने बडे जहान में
तेरा कोई मुकाम नही था।
हे छोटा-सा आशियाना अपना
इतने बडे जहान में
जिसका कोई निशान नही था।
मिलता हमें भी बहुत कुछ
पर हमारी किस्मत में ही कुछ नही था।
क्या दोष दे हम तुमको
जब खुद को ही कोई होश नही था।
था तु कितने करीब मेरे
पता होते हुये भी हमें ये मालूम नही था।
था हमें भी प्यार तुमसे
बस हमें उसका अहसास नही था।
अहसास था जिसका हमको
पर उसको हमसे प्यार नही था।
कैसे समझाऊ खुद को
के इतने बडे जहान में
तेरा कोई मुकाम नही था।
कैसे मिलता तुझे वो सब
जो कभी तेरा नही था।