मुकर्रम हुसैन सिद्दीकी
मुकर्रम हुसैन सिद्दीकी
1 मार्च 1947 को रामपुर में जन्मे व्यवसायी मुकर्रम हुसैन सिद्दीकी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं ।सारा शहर आपकी मिलनसार और मोहब्बत से भरी जीवन शैली का प्रशंसक है।
मोहम्मद अली जौहर अस्पताल के आप फाउंडर ट्रस्टी हैं। उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के 1989 से 1991 के मध्य सदस्य रहे। कानूनी सहायता प्रदान करने के क्षेत्र में भी आपने योगदान दिया है।
सिविल लाइंस स्थित ‘जामिया तुस सुलेहात’ जो कि लड़कियों की शिक्षा का अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थान है, उसके आप जनरल सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत हैं। सेवा भाव से संस्था के उत्थान के लिए समर्पित हैं। बालिका शिक्षा के क्षेत्र में आपका यह योगदान स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है।
निस्वार्थ भाव से समाज सेवा के कार्यों में आपकी एक अलग ही पहचान है। खुशमिजाज तबीयत के धनी हैं। शायद ही कभी किसी ने आपको क्रोधित होते हुए देखा होगा।
वार्तालाप के मध्य हॅंसी-मजाक के अवसर ढूॅंढ लेना आपकी विशेषता है । एक बार किसी ने आपको अपनी योग्यता बी.डी.एस. बताई और आपने तत्काल बीडीएस की फुल फॉर्म ‘बुरे दॉंत सफा’ करके वातावरण में हास्य की फुलझड़ियॉं बिखेर दीं।
राजनीति में भी आप सक्रिय रहे। दिवंगत शन्नू खॉं को 1985-90 के आसपास नगर पालिका अध्यक्ष बनाने के पीछे आपकी ही रणनीति प्रमुख थी।
धर्मनिरपेक्षता की आप जीती-जागती मिसाल हैं। सांप्रदायिकता की संकीर्णताओं से मुक्त समाज का निर्माण आपके प्रमुख जीवन उद्देश्यों में से एक है।
जीना इनायत खॉं स्थित आपका निवास पौने दो सौ साल पुराना है। लंबे-चौड़े ऑंगन से धूप-हवा का वरदान आपके निवास को प्रकृति से भरपूर प्राप्त हो रहा है। आपके एक पुत्र और छह पुत्रियॉं हैं ।पारिवारिक दायित्वों से निवृत्त हो चुके हैं।
खुशमिजाज आदत आपको सबका प्रिय बना लेती है। जिससे आपके संबंध बने, वह सदा के लिए आपके और आप उनके हो गए।
बातचीत के मध्य बताते हैं कि एक बार फोन की घंटी बजी। उठाया तो उधर से आवाज आई “मुकर्रम ! कैसे हो”
नाम के आगे न ‘जी’ लगा था, न ‘साहब’ था। यह सुनते ही मुकर्रम साहब का हृदय खुशी से भर उठा। भावुक हो गए। पता चला कि सत्तानवे वर्षीय सेवानिवृत्त जज साहब का फोन था। कहा कि “अकस्मात आपकी याद आ गई और फोन मिला लिया”।
मुकर्रम साहब भावुक होकर बताते हैं कि वार्तालाप में जो आत्मीयता बुजुर्गों से प्राप्त होती है, वह दुर्लभ है। उनका प्रेम नि:स्वार्थ होता है।
धार्मिक सद्भावना के लिए आपका कथन है कि सभी धर्मो का निचोड़ अगर देखा जाए तो कुछ अच्छी बातें हैं, जिन पर अमल करके हम सच्चे धार्मिक व्यक्ति बन सकते हैं। उदाहरण गिनाते हुए वह कहते हैं कि सच बोलना, किसी का दिल न दुखाना, सबके साथ प्रेम से व्यवहार करना, जो कष्ट में हैं उसकी मदद करना, दूसरे लोगों के सामने अपनी शक्ति का अहंकार न दिखाना आदि ऐसे गुण हैं जिन्हें जीवन में आत्मसात करके हम सच्चे हिंदू और सच्चे मुसलमान बन सकते हैं। वह कहते हैं कि व्यवहार की अच्छी बातें सब धर्मों की पुस्तकों में लिखी हुई हैं लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि हम सद्भाव विकसित करने में असमर्थ रहते हैं।
हृदय रोग के कारण मुकर्रम साहब को दो बार स्टंट पड़ चुके हैं। दूसरी बार स्टंट तब पड़ा जब वर्ष 2023-24 में उन्हें चिकनगुनिया था। स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के बावजूद वह प्रसन्नचित्त रहते हैं। उनका मानना है कि शरीर रोगों का घर है। अतः रोग तो आते रहेंगे लेकिन अगर हम इस बात को समझ लें कि संसार नाशवान है तो अपनी मानसिकता को बेहतर बनाकर हम स्वयं भी भीतर से खुश रह सकते हैं और अपने चारों तरफ के वातावरण को सुंदर बना सकेंगे।
पर्यावरण की शुद्धता के प्रति भी आप बहुत सचेत हैं। आपका कहना है कि आज चारों तरफ हवा में जहर फैलता जा रहा है। कीटनाशकों के छिड़काव के कारण फल-सब्जियां सभी जहरीली होती जा रही हैं । कोई भी वस्तु शुद्ध रूप में उपलब्ध होना बहुत दुर्लभ हो गई है।
पुराने दिनों को याद करते हुए वह रामनगर ( उत्तराखंड ) में फैले हुए अपने व्यापार का स्मरण करते हैं। तब ‘दीपक माचिस’ का उनका बड़ा काम था। वहां पंडित जी की दुकान पर वह माचिस के कारोबार के सिलसिले में जाते थे। पंडित जी माचिस को ‘सलाई’ कहते थे। यह दियासलाई अर्थात माचिस का अत्यंत संक्षिप्त नामकरण था। जब रामनगर से लौटते थे तो सस्नेह भेंट के रूप में पंडित जी उनको एक या दो किलो ‘उड़द’ अवश्य देते थे। इसके पैकेट उनके पास बने बनाए रखे होते थे। यह उनके अपने खेत के होते थे। बिना रासायनिक पदार्थ के उपयोग किए हुए ही इसकी पैदावार होती थी। वह स्वाद अनूठा था।
मुकर्रम साहब का मानना है कि आज हम फिर ऑर्गेनिक खेती की तरफ लौट रहे हैं । फिर से आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व हमारी समझ में आ रहा है। मुकर्रम हुसैन सिद्दीकी साहब का यह कथन भला किसको ठीक नहीं लगेगा। हाल के दशकों में अंग्रेजी दवाइयों के साइड इफेक्ट भी बढ़े हैं और रोगों को जड़ से समाप्त कर पाने की उनकी अक्षमता भी उजागर हुई है। आज सब लोग प्राकृतिक जीवन के साथ कदम से कदम मिलाने के इच्छुक हैं । मुकर्रम हुसैन सिद्दीकी भी एक ऐसी ही पवित्र इच्छा से ओतप्रोत व्यक्तित्व हैं । उनके सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं ।