*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
*** मुंह लटकाए क्यों खड़ा है ***
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अबे मुंह लटकाए क्यों खड़ा है,
अभी भी अपनी जिद पर अडा है।
शकल के क्यों बजाए हैँ बारह,
शायद अभी ही किसी से लड़ा हैँ।
अरे कुछ सुन और कुछ तो बता,
कौन है वो जो तेरे पीछे पड़ा है।
कुछ तो बोल,बता क्या है माजरा,
हसीं मुख पर क्यों ताला जड़ा है।
मनसीरत आपने हैँ नजरें झुकाई,
पापों से भरा क्या फूटा घड़ा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)