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3 Jul 2021 · 2 min read

मुंबई सपनों की नगरी

निकिता छोटे शहर कानपुर की रहने वाली साधरण सी लड़की थी।उस का सपना था कि वो अपने दम पर कुछ कर के दिखाए और उस का ये सपना उसे मुंबई खींच लाया।माँ पापा को मनाकर बड़ी मुश्किल से मुंबई में जॉब इंटरव्यू देने आ गयी और भाग्य से उसे एक अच्छी जॉब भी मिल गयी।अभी नई जॉब थी तो प्राइवेट जॉब में कोई भी गारंटी नही थी,इसलिए एक रूम और हॉल का छोटा सा फ्लैट ले लिया और माँ पापा को वादा किया कि जल्द ही उन को बुला लेंगी।

सब कुछ सही चल रहा था कि रवि ने ऑफ़िस जॉइन किया था। ऑफ़िस में पहली नजर बेहद खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट पर गयी और रवि ने उसे इम्प्रेस करना शुरू कर दिया।एक ही हफ्ते में दोनों की दोस्ती भी हो गयी।ऑफ़िस साथ ही आते जाते थे दोनो एक बस में।

उस दिन रवि निकिता से बोला “यार आज मुझे कुछ टेंशन है, क्या मैं आज रात तुम्हारे घर रुक सकता हूँ, एक्चुअली आज मकान मालिक के घर में उस की बेटी की शादी है तो घर पर बहुत शोर शराबा होगा और मुझे ऑफ़िस का अर्जेंट काम है।”

निकिता ने बोला ,”इट्स ओक, नो प्रौम्बल, मैं अकेली ही रहती हूँ। पर तुम्हें सोफे पर सोना होगा।”

रात को रोमांटिक सांग चल रहा था। तभी रवि ने मौके का फायदा उठाया और दोनों नज़दीक आ गए।

सब कुछ अचानक हुआ तो निकिता न तो खुद को रोक पायी और ना ही रवि को कुछ करने से रोक पायी।

बस फिर क्या था अगले दिन रवि निकिता के घर ही समान लेकर आ गया और दोनों साथ रहने लगे।

निकिता रवि के प्यार में थी कि उसे कुछ याद ही नही रह की क्या गलत और क्या सही।

वक़्त गुजरा और एक साल बाद रवि की जोइनिंग पूना से मुंबई हो गयी ।

रवि निकिता को प्रॉमिस कर के गया कि एक महीने में सेट हो कर उसे अपने साथ ले जाएगा,

निकिता ने कई बार उसे फोन किया पर हर बार रवि नया बहाना बना देता,फिर एक दिन रवि का मोबाईल नम्बर स्विच ऑफ आने लगा और उस दिन के बाद रवि का वो नम्बर दुबारा लगा ही नही। आज 5 साल हो गए, रवि का कॉल भी नहीं आया और ना वो खुद उसे लेने आया।

बिन फेरे हम तेरे

बड़े बड़े शहरों के बड़े बड़े सपनों में अकसर छोटे छोटे शहरों के बच्चे कहि टूट जाते हैं या फिर खुद को खो देते है और इस शहर के रंग में रंग जाते हैं।

सपनों के शहर में सब कुछ मिलता है पर इस मे चमकने के लिए खुद को आग में जलाना भी पड़ता है कई बार।

निकिता ने अपने मम्मी पापा को शहर बुला लिया और रवि को भुलाकर अपने सपनों की उड़ान को पूरा करने में लग गई।माँ और पापा भी खुश थे कि हमारी बेटी इतनी बड़ी हो गई कि इतने बड़े शहर में अकेले ही अपनी कमाई से पूरा खर्च चलाती है और उन के भी सपनों को साकार कर रही है।

संध्या चतुर्वेदी
मथुरा,उप

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