मीरां बाई
कृष्ण प्रेम में दीवानी मीराबाई
भारत का राजस्थान प्रान्त वीरों की खान कहा जाता है; पर इस भूमि को श्रीकृष्ण के प्रेम में अपना तन-मन और राजमहलों के सुखों को ठोकर मारने वाली मीराबाई ने भी अपनी चरण रज से पवित्र किया है। हिन्दी साहित्य में रसपूर्ण भजनों को जन्म देने का श्रेय मीरा को ही है। साधुओं की संगत और एकतारा बजाते हुए भजन गाना ही उनकी साधना थी। मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई..गाकर मीरा ने स्वयं को अमर कर लिया।
मीरा का जन्म मेड़ता के राव रत्नसिंह के घर 23 मार्च, 1498 को हुआ था। जब मीरा तीन साल की थी, तब उनके पिता का और दस साल की होने पर माता का देहान्त हो गया। जब मीरा बहुत छोटी थी, तो एक विवाह के अवसर पर उसने अपनी माँ से पूछा कि मेरा पति कौन है ? माता ने हँसी में श्रीकृष्ण की प्रतिमा की ओर इशारा कर कहा कि यही तेरे पति हैं। भोली मीरा ने इसे ही सच मानकर श्रीकृष्ण को अपने मन-मन्दिर मे