मीठे मीठे आम
छज्जों पर आने लगे, पत्थर नित्य तमाम ।
शायद फिर से पक गए,..मीठे-मीठे आम ।।
बैठे थे जिस पर स्वयं, वही काट दी डाल ।
मंदबुद्धि की दूसरी, क्या दूँ और मिसाल ।।
रमेश शर्मा
छज्जों पर आने लगे, पत्थर नित्य तमाम ।
शायद फिर से पक गए,..मीठे-मीठे आम ।।
बैठे थे जिस पर स्वयं, वही काट दी डाल ।
मंदबुद्धि की दूसरी, क्या दूँ और मिसाल ।।
रमेश शर्मा