मिशाल
इलेक्शन का समय था दोनों पार्टियों का प्रचार पुरे जोर शोर से चल रहा था पुरे मुहल्ले की दीवारों पर पोस्टरों की भरमार थी हर पार्टी को लग रहा था की जो ज्यादा प्रचार करेगा और ज्यादा पोस्टर लगाएगा उसकी जीत पक्की है।
रैली में भी छोटे बच्चों से लेकर बुढ़ो और औरतों को भी बुला कर शामिल किया जाता खाने के पैकेट वह कुछ रूपयों के लालच में मुहल्ले के बहुत से लोग शामिल होजाते थे।
ऐसे बच्चे भी जिनको वोट देने का भी कोई अधिकार नहीं था और वे लोग भी जिनका किसी भी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं था ।
थोड़ी देर हल्ला मचाते और फिर पैसे व खाने का पैकेट लेकर अपने अपने घरों को लौट जाते। आज रविवार होने की वजह से लोग भी रोज की अपेक्षा कुछ ज्यादा थे दोनों पार्टियों की रैलीयां निकल चुकी थी
थोड़ी देर में दोनों पार्टियों की रैली आमने सामने आ खडी हुई । दोनों ओर से जोर शोर से नारे लगने लगे दोनों पार्टियां अपने आप को एक दूसरे से बढ़ कर साबित करने की कोशिश करने लगी जो देखते ही देखते हाथापाई में बदल गई । और मुहल्ले के लोग आपस में ही लड़ने लगे।
राजू और सोनू भी रैली का हिस्सा थे मगर लड़ता देख साईड में आ खड़े हुए दोनो अलग अलग तरफ से प्रचार कर रहे थे मरने दें यार सालों को अपना क्या जाता है कोई हारे कोई जीते अपने को तो पैसे लेकर चलते बनना है ।
“इन नेताओं का भी कोई भरोसा नहीं है अभी लग मर रहे हैं और शाम को साथ में बैठ कर दारु पिएंगे ”
और पब्लिक साली जबरदस्ती में लड़ मर रही है साले पब्लिक को उल्लू समझ रहे हैं जीतेगा तो वहीं जो ज्यादा पैसा और दारु बांटेगा।
ऐसे लोगों को नेता बनाएगा तो देश कैसे तरक्की करेगा अपने को बस अपना देखने का और रात मार के निकल जाने का
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े और कुछ देर बाद दारु का दौर शुरू हो चुका था। एकता की इससे अच्छी मिशाल भला कहां देखने को मिल सकती थी।
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© गौतम जैन ®