मिल जाने की तमन्ना लिए हसरत हैं आरजू
जन्मों का प्यार तेरा
ये इजहार मेरा
मिल जाने की तमन्ना
लिए हसरत हैं आरजू
गम को भुलाने कि तू हैं जुस्तजू
सिखाते हैं अपने को वो हुनर
भूल ना जाएं फिर वो डगर।
प्यार भरी नजर कहाँ हैं रे
अब वो योगी कहाँ है रे
मिल जाने की तमन्ना
लिए हसरत है आरजू
गम कोभुलाने कि तू हैं जुस्तजू
तेरा प्यार वही
कर्तव्य भार वहीं
जिसे चाहे हर -दिल बार- बार
फिर भी लगता रहे
कम हैं प्यार
गमों से भी प्यार हों
अपनों में बहार हो_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार,भागलपुर दिनांक24-6-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।