मिले हम तुझसे
मिले हम तुझसे
जब भाव थे खरे,
मधुर मिलन था वो सफर का
वो नहीं था आम, खास ही रहा,
हां भले ही अब शायद हो गया अंजान,
फिर भी तुम्हारे खास अपनों में
जिक्र हो यदि मेरा,,
मन ही मन याद करना
पर बने रहना थोड़ा गम्भीर,
मायूसी चेहरे पर बिल्कुल ना झलकें
कि समझ ना सकें कोई भी बेमेल दोस्ती की तासीर।
-सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान